तेजपाल सिंह धामा

श्री तेजपाल सिंह धामा ने जहां स्वामी दयानंद, डॉ. हेडगेवार के सामाजिक कार्यों से प्रेरित होकर समाज के लिए कुछ कर गुजरने का संकल्प लिया, वहीं उपन्यासकार गुरुदत्त के साहित्य में निहित वेद, उपनिषद् व दर्शन-शास्त्रों के निचोड ने इन्हें सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध, विज्ञान, तर्क व प्रमाण सहित लेखनी उठाने को विवश किया। प्रथम काव्य रचना ‘आंधी और तूफान’ बच्चों के साथ-साथ बड़ों में भी अत्यन्त लोकप्रिय हुई। तत्पश्चात् द्वितीय रचना उपन्यास ‘शांति मठ’ लिखा, जो एक संपादक को इतना पसंद आया कि उन्होंने अपने साप्ताहिक पत्र में उसे श्रृंखला बद्ध प्रकाशित किया।

समाजोत्थान दुर्व्यसन, अस्पृश्यता, पशु-पक्षी हत्या, परावलंबन और प्रकृति के साथ छेड़ छाड़ -ये कुछ ऐसी बुराइयां हौं जिनके कारण सम्पूर्ण समाज को आर्थिक, सामाजिक व प्राकृतिक समस्याओं का सामना करना पड़ ता है। समाज में व्याप्त इन व्याधियों को जड़ से मिटाने के प्रयास में लगे हुए हौं श्री तेजपाल सिंह धामा। उन्हाने अच्छी-खासी नौकरी छोड़ कर समाज-सेवा को ही अपना मुख्य ध्येय बना लिया है। कृषि विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने वाले श्री धामा जाति-प्रथा के नाम पर फैलाई जा रही कुरीति के विरोधी हौं। उन्हाने स्वयं अन्तरजातीय विवाह किया है। उन्हाने बच्चा के लिए ‘वैदिक बाल संस्था’ और युवाओं के लिए युवा विकास परिषद् की स्थापना की है। युवा विकास परिषद् के माध्यम से ही इन्हाने दुर्व्यसन, पशु-पक्षी संरक्षण, अस्पृश्यता मुक्ति जैसे आन्दोलन चलाए हौं। दुर्व्यसन मुक्ति आन्दोलन से प्रभावित होकर अब तक ४३,००० युवा बीड़ ी, सिगरेट, पान-मसाला आदि का सेवन त्याग चुके हौं। आर्य समाज और राष्टीय स्वयंसेवक संघ से बचपन से ही जुड़े रहे श्री धामा एक आदर्श बने हुए हौं।

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