आयुर्वेद: Difference between revisions
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'''आयुर्वेद''' आयुयागु [[वेद]] अर्थात आयुयागु ज्ञान खः। गु शास्त्र नं
== आयुर्वेदयु न्ह्यथनेज्या व विकास ==
आयुर्वेद के इतिहास पर यदि अवलोकन किया जाय तो इसकी उत्पत्ति महर्षि देवता [[ब्रह्मा]] जी द्वारा माना गया है, जिन्होंने [[ब्रह्मसंहिता]] की रचना की थी । कहा जाता है कि ब्रह्मसंहिता में दस लाख श्लोक तथा एक हजार अघ्याय थे, लेकिन आधुनिक काल में यह ग्रंथ उपलब्ध
आयुर्वेद के ज्ञान के आदि श्रोत [[वेद]] मानें जाते हैं । यद्यपि [[आयुर्वेद]] का वर्णन सभी चारों वेदों में किया गया है, लेकिन [[अथर्ववेद]] से अधिक साम्यता होंनें के कारण [[महर्षि सुश्रुत]] नें उपांग और [[महर्षि वाग्भट्ट]] नें उपवेद बताया है ।
इसी कडी में, [[ऋगवेद]] में आयुर्वेद को उपवेद की संज्ञा दी गयी है । [[महाभारत]] में भी आयुर्वेद को उपवेद कहा गया है । [[पुराण|पुराणों]] में भी वर्णन प्राप्त
भारतीय चिकित्सा विज्ञान, जिसे आयुर्वेद कहते हैं, का सम्पूर्ण वर्णन प्रमुख रूप से [[चरक संहिता]] और [[सुश्रुत संहिता]] में किया गया है। अन्य संहिताओं [[यथा काश्यप संहिता]], [[हरीत संहिता]], में इसका वर्णन किया गया है, लेकिन ये सम्पूर्ण नहीं हैं। [[अष्टांग संग्रह]], [[अष्टांग हृदय]], [[भाव प्रकाश]], [[माधव निदान]] इत्यादि ग्रंथों का सृजन चरक और सुश्रुत को आधार बनाकर रचित की गयीं हैं। समय के परिवर्तन के साथ साथ निदानात्मक और चिकित्सकीय अनुभवों को लेखकों नें अपने अपने दृष्टिकोणों और विचारों को अनुकूल समझ कर संस्कृत भाषा में लिपिबद्ध किया ।
== आयुर्वेद का उद्देश्य ==
संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो दुःखी होना चाहता हो। सुख की चाह प्रत्येक व्यक्ति की होती है, परन्तु सुखी जीवन उत्तम स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। स्वस्थ और सुखी रहने के लिए यह आवश्यक है कि शरीर में कोई विकार न हो और यदि विकार हो जाए तो उसे शीघ्र दूर कर दिया जाये। आयुर्वेद का मुख्य लक्ष्य व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना एवं रोगी हो जाने पर उसके विकार का प्रशमन करना है। ऋषि जानते थे कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति स्वस्थ जीवन से है इसीलिए उन्होंने आत्मा के शुद्धिकरण के साथ शरीर की शुद्धि व स्वास्थ्य पर भी विशेष बल दिया है।
== आयुर्वेद अवतरण ==
आयुर्वेद के अवतरण की कई गाथायें हैं :
[[चरक संहिता]] के अनुसार ब्रम्हा जी नें
सुश्रुत संहिता के अनुसार ब्रम्हा जी नें आयुर्वेद का ज्ञान दक्षप्रजापति को दिया, दक्ष प्रजापति नें यह ज्ञान अश्वनीं कुमार को दिया, अश्वनी कुमार से यह ज्ञान धन्वन्तरि को दिया, धन्वन्तरि नें यह ज्ञान औपधेनव और वैतरण और औरभ और पौष्कलावत और करवीर्य और गोपुर रक्षित और सुश्रुत को दिया ।
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थुकिगु सिद्धान्त थ्व कथलं दु
* -[[त्रिदोष]]
* -[[त्रिदोषोंयु छगु छगु यु ५गु ५गु भेद]]
* -[[सप्त धातुयें]]
* -[[मल]]
* -[[ओज]]
* -[[अग्नि]]
* -[[प्रकृति]] इत्यादि इत्यादि
=== त्रिदोष ===
मुख्तया यह तीन होते हैं जिन्हें वात, पित्त और कफ कहते हैं / ये एकल दोष कहे जाते हैं /
Line ४७:
जब वात, पित्त और कफ ये तीनों दोष एक साथ मिल जाते हैं , तब इस मिश्रण को त्रिदोषज या सन्निपातज कहते हैं /
=== त्रिदोषों के प्रत्येक के पांच पांच भेद ===
हरेक दोष के पांच भेद आयुर्वेद के मनीषियों नें निर्धारित किये हैं /
वात दोष के पांच भेद (1) समान वात
पित्त दोष के पांच भेद होते हैं / 1- पाचक पित्त 2- रंजक पित्त 3- भ्राजक पित्त 4- लोचक पित्त 5- साधक पित्त
Line ६०:
=== सप्त धातु ===
आयुर्वेद के मौलिक सिदधान्तों में सप्त धातुओं का बहुत महत्व है। इनसे शरीर का धारण होता है, इसी कारण से धातु कहा जाता हैं। ये संख्या में सात होती हैं-
* 1- रस धातु
* 2- रक्त धातु
* 3- मांस धातु
* 4- मेद धातु
* 5- अस्थि धातु
* 6- मज्जा धातु
* 7- शुक्र धातु
सप्त धातुयें वातादि दोषों से कुपित होंतीं हैं। जिस दोष की कमी या अधिकता होती है, सप्त धातुयें तदनुसार रोग अथवा शारीरिक विकृति उत्पन्न करती हैं।
Line ८४:
[[श्रेणी:आयुर्वेद]]
=== मल ===
मल तीन प्रकार के होतें हैं / 1- पुरीष
== आयुर्वेद में नयी खोजें ==
Line ९३:
वतर्मान में स्वतंत्रता के पश्चात आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान नें बहुत प्रगति की है.
=== [[इलेक्ट्रोत्रिदोषग्राम (ई.टी.जी.)]]-[[नाडी-विज्ञान का आधुनिक स्वरूप]]-[[आयुर्वेद के सिद्धान्तों की साक्ष्य आधारित प्रस्तुति]] ===
सम्पूर्ण आयुर्वेद [[त्रिदोष]] के सिद्धान्तों पर आधरित है. त्रिदोष सिद़धान्त यथा [[वात, पित्त, कफ]] तीन दोष शरीर में रोग पैदा करते हैं. इन दोषों का ज्ञान करनें का एकमात्र उपाय [[नाडी परीक्षण]] है, जिसे प्राप्त करना बहुत आसान कार्य नही है / नाडी परीक्षण के परिणामों को देखा नहीं जा सकता है कि शरीर में प्रत्येक दोष का कितना असर है.
Line १०१:
ई0टी0जी0 तकनीक से आयुर्वेद के निदानात्मक दृष्टिकोणों को निम्न स्वरूपों में प्राप्त करते हैं.
* 1-त्रिदोष यथा वात,पित्त,कफ का ज्ञान
* 2-[[त्रिदोषों के प्रत्येक के पांच पांच भेदों का ज्ञान]],
* 3-[[सप्त धातुओं का आंकलन]], [[दोष आधारित सप्तधातुयें]]
* 4-[[मलों का आंकलन यथा पुरीष, मूत्र, स्वेद]]
* 5-[[अग्नि बल]], [[ओज]], [[सम्पूर्ण ओज]] आदि का आंकलन
ई0टी0जी0 मशीन, कम्प्यूटर साफ़टवेयर की मदद से [[आयुर्वेद के मौलिक सिदधान्तों का आंकलन]] करते हैं. इस तकनीक की मदद लेकर [[आयुर्वेद के विकास की असीम सम्भावनायें]] हैं.
Line ११२:
== सन्दर्भ ग्रंथ ==
* [[चरक संहिता]]
* [[सुश्रुत संहिता]]
* [[वाग्भट्ट]]
== स्वयादिसं ==
* [[वेद]]
== पिनेयागु स्वापूतः ==
* [http://niam.com/corp-web/index.htm भारतीय आयुर्वेद औषध संस्था]
* [http://vandemataram.wordpress.com/2006/08/23/वैदिक-विद्या-आयुर्वेद वैदिक विद्या : आयुर्वेद (ब्लॉग वन्देमातरम पर)]
* [http://indianalternativemedicine.blogspot.com :आयुर्वेद,पर्यायी व पुरक औषध पद्धती --Indian Alternative Medicine]
* इलेक्ट्रोत्रिदोषग्राफी तकनीक [http://etgind.wordpress.com]
{{हिन्दू धर्म}}
[[
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[[ar:أيورفيدا]]
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[[ms:Ayurveda]]
[[my:အာယုဗ္ဗေဒ]]
[[ne:आयुर्वेद]]
[[nl:Ayurveda]]
[[no:Ayurveda]]
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