आयुर्वेद: Difference between revisions

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अमृतम पत्रिका, ग्वालियर मप्र से साभार....
 
आज का धर्म सब कुछ पा लेने की लालसा है। मूल धर्म है-
!!रक्षति देह:!! अपने शरीर की रोगों से रक्षा करना।
समस्त झगड़े की जड़ धर्म है। प्राचीनकाल से मानव को मत, सिद्धान्त, विश्वास बेचा गया है। ये सब झूठे हैं। आज दुनिया में ऐसा कोई धर्म नहीं है, जो व्यक्ति का खुद से साक्षात्कार करा सके। शान्ति दे सके।
लगभग समस्त धर्म डराने के लिए बने हैं। धर्म कहता है, पहले स्वयं को समझो, जानो-पहचानो।
मानव मस्तिष्क का सेतु शिवलिंग है। यह मनुष्य का प्रतीक है। शिव सहिंता के अनुसार महादेव का प्रतीक चिन्ह शिवलिंग मानव मस्तिष्क का प्रतीकही दूसरा रूप है।
लोगों की भूल है कि भगवान मन्दिर में हैं। हम पत्थर को भगवान मानकर खुद पत्थर बनते चले जाते हैं।
अपने को जानना, सकारात्मक विचार और मन को शांति सबसे बड़ी पूजा है।